एक अति प्रतिक्रियावादी रहता है
प्राय: भ्रमित, क्षुभित और क्रोधित
अपने परिवेश में अपने प्रतिवेश में…
उसकी नकारात्मकता, और फिर
फलस्वरूप अत्यधिक आक्रामकता
बदल देती है उसे एक विवेकशून्य
स्वार्थी, घमंडी और परपीड़क
इंसान रूपी ढोर में।
फिर समय के साथ यह इंसान
खो देता है खुद की पहचान –
गरिमा, साख, विश्वसनीयता
और स्वीकार्यता, या फिर यूँ कहें –
प्रेम एवं सानिध्य अपने समाज में
रह जाता है बनकर बस केवल वह
एक ढोंगी और अनावश्यक
आदिम पुतला सा।
16,741 total views, 43 views today
No Comments
Leave a comment Cancel