श्वेत धवल ललित-ललाम
पुष्पगुच्छ रजनीगंधा के
उनकी भीनी-भीनी विशिष्ट सुगंध
बरबस किसी की याद दिला जाते हैं
और तब यह मन फिर एक बार
बिह्वल और बेचैन हो उठता है…
वैसे तो एक जमाना हुआ
वह कोमल रजनीगंधा स्पर्श
वह स्निग्ध रजनीगंधा अहसास
अनगिनत रजनीगंधा यादें और सपने
यादों के जुगनू बन मानस पटल पर
झिलमिल करते छाने लगते हैं।
वह मेरे साथ नहीं है
फिर भी वह मेरे साथ है
नर्म-कोमल रजनीगंधा एहसास
बिलकुल रुई के फाहों जैसा
क्ह और उसकी मोहक खुशबू
केवल शरीर और मन ही नहीं
मेरी आत्मा में भी बसी है।
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