हाँ, अब सचमुच ही इच्छा रहित
मायावी लालसाओं और तृष्णा शून्य
भौतिक जीवन के बच रहे शेष दिन
मैं न तो कभी गिनता हूँ न ही सोचता हूँ।
इस लम्बी, जटिल जीवन यात्रा में
बहुत जल्दी हुआ था यह अहसास
कितनी भी चतुराई और सावधानी बरतूं
कितना भी यथार्थवादी और परिशुद्घ हो लूं
प्रारब्ध या नियति की खुद की अपनी रचना
हमसे रही है एक कदम आगे हमेशा, हरदम
कभी हमारे पक्ष में अच्छाई लाकर,
तो कभी विपरीत कुछ बुराई दे जाकर…
इससे मैंने सीखा केवल कर्म करते जाना
फल कुछ भी मिले, स्थितप्रज्ञ स्वीकारना।
कभी लोभी या मोहग्रस्त नहीं रहा
खुद के हिस्से की लौकिक चेरीज्* का
निजी संसाधन हो या फिर उनका उपभोग
स्वभाव ऐसा रहा और फिर दृढ़ विश्वास भी
बंधनमुक्त करना, न कि बांध कर रखना
फिर चाहे वह प्रियतम हो या दुनियावी जन-धन
बेहतरीन, सब कुछ मेरे ही हिस्से में ही आए,
ऐसी न तो कभी सोच रही, न ही रहा मन
होगा अन्याय यदि करूं न आज उनका जिक्र
इस कठिन यात्रा में, माँ ही रहीं मेरी मार्ग दर्शक।
इस मन में झाँकता हूँ तो पाता हूँ
खुद के इस शरीर और आत्मा को
करीब-करीब समदर्शी और समभाव…
वह कुख्यात एवं निन्द्यनीय पाँच**
जो करते हैं शासन, और मन खराब
मैं कमोवेश अब मुक्त हूँ अब इन सब से
अंशमात्र बाकी है बस कुछ ममता और मोह
इस जन्मभूमि की, चुनिंदा प्रियजन की भी।
जीवन की गहराती संध्याबेला में
कुछ और कटोरा भर चेरीज की
अब कोई लालसा या तृष्णा बाकी नहीं
न तो अब इस आत्मा को कोई जल्दी है
न ही मन में कोई बेचैनी अथवा असंतोष
या फिर किसी घृणा या क्रोध का अहसास
इस सब के ठीक विपरीत
स्थिर-शाँत शरीर और मन के साथ
अब इस आत्मा में है पूर्ण समरसता
साथ ही परम आनन्द का अहसास।
* भोग विलास की सांसारिक वस्तुएं
(Worldly distractions)
** काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार
(Lust, Anger, Greed, Attachment, Ego)
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