My Humming Word

  1. Poem

बदला मौसम

शरद ऋतु तो अभी भी आती है
पर पतझढ़ में अब वह बात कहाँ  
वह वैभव वह भव्यता नहीं दिखती
जो बरसों पहले हुआ करती थी
पेड़ों से झिलमिल झरती वह पत्तियाँ
उनके लाल, पीले, नारंगी, सुरमई रंग.

वसंत भी हर साल अब भी आता है
पर नवजीवन नव-उल्लास नहीं लाता
वैसी समृद्धि-सम्पन्नता अब नहीं दिखती
कोपलों और कलियों में यौवन नहीं
फूलों में पहले जैसी खुशबू नहीं रही
इन्द्रधनुषी रंग और छटा तो बिलकुल नहीं.

पता नहीं यह सच है या आभासी मात्र
मौसम अब सचमुच ही बदल गए हैं
या इन वर्षों में मैं ही संवेदनशून्य हुआ हूँ
उसका खोना अपरिहार्य भी तो नहीं  था
जड़त्व का शिकार तो आखिर मैं ही था  
शायद अब यह नियति का प्रतिकार है.  

Image (c) Pinterest

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