संपादक की पसंद
वह है
मौलिक,
अनवरत, सम्पूर्ण,
निराकार, अवर्णनीय,
नियत और अनियत,
अक्षय एवं अटूट!
वह है
सर्वज्ञ, सर्व-भूत,
सर्व-शक्तिमान,
उत्तम व उत्कृष्ट,
स्थायी एवं निरन्तर,
असीम और अनन्त,
जिसकी
न कोई शुरुआत है
और न ही कोई अंत!
वह है
वजह और साधन,
द्रव्य और परिणाम,
सम्पूर्ण सृजन का,
जो है ज्ञात
या फिर अज्ञात,
भूत व वर्तमान
एवं
समाहित भविष्य में!
वही है, दोनों
सृजनकर्ता
और सृजित भी,
साकार एवं निराकार भी,
ज्ञात अथवा अज्ञात भी,
परम और अंतिम भी,
सरल, गूढ़ और गुप्त भी
समाया है सब जगत में!
सनातन
शास्त्रानुसार
आत्मबल
या आत्मानुभूति
ही है सच्चा साधन
निर्वाण पाने को
और इस तरह
सर्व-शक्तिमान
सत् चित् और आनन्द
ब्रह्मन् (ईश्वर) में
लीन हो जाने को।
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