मैं अक्सर सोचता रहता हूँ
क्या तुम भी कभी याद करते हो
हम कभी-कहीं मिले थे एक बार
कुछ साझे पल और स्थान साक्षी हैं।
तुम खुद तो आगे बढ़ गए थे
पर कुछ स्मृतिचिह्न पीछे छोड़ गए
वे अधूरे सपने और अधूरी इच्छाएँ
मैंने जीवन भर एक अंधे की तरह
उनका पीछा किया।
जीवन के इस बहीखाते में
मेरे हिस्से में केवल कुछ यादें आईं
कौन जाने, शायद इसीलिए शेष जीवन
मैं तुम्हारी यादों से प्यार करने लगा।
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