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  1. Poem

ज्योति दर्शन है दीपावली

यह बात सब जानते है, कि तन है कच्चा गागर।
इसमें निवास करता है, ‘वो’ ख़ुशी का महासागर।।

सीमित में असीमित, करती दीपावली है उजागर।
मैने कुछ भी नहीं कहा, इस शाश्वत में मिलाकर।।

मैं खुशी का सागर हूं, आप हैं खुशी के महासागर।
इस सागर में महासागर, मिल जाओ तुंरत आकर।।

हस्ती में है हसीन हस्ती, हम धन्य हुए उसे पाकर।
निर्गुण की कौन कहे, कहने में हैं अपंग आखर।।

भीतर बैठा मालिक हैं, बाहर मैं उसका हूं चाकर।
वो ज्योति परम ज्योति, आपको रखे सुखी कृपा कर।।

कच्चा = mortal; गागर = earthen pitcher; ‘वो’ ख़ुशी का महासागर = God, ईश्वर; सीमित = limited body; असीमित= umlimited (infinitely vast soul i.e. God); उजागर = revealed; शाश्वत = eternal, चिरस्थायी; मिलाकर = by adding; सागर = sea; महासागर = Ocean; हस्ती = man,  मनुष्य; हसीन = beautiful; धन्य = blessed; निर्गुण = formless; अपंग = handicapped; आखर = letters, अक्षर; मालिक = master (God); बाहर = outside; चाकर = servant; परम ज्योति = the supreme light (God); कृपा = grace.

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