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दिए की तो बस नियति है
और शायद उसका धर्म भी
जीवन भर जलते जाना
सबका अँधेरा तो मिटाना
पर खुद अपने का अस्तित्व
बस अंधकार के इर्द-गिर्द
सिमट कर रह जाना।
शायद मैं भी एक दिया था
जीवन भर दूसरों की खातिर
जलता रहा, अभी भी जल रहा
निगाह चाँद सितारों पर थी
पर वास्ता बस अँधेरों से पड़ा
तो शायद अभी और जलना है
बस यूँही है जलते रहना।
Image (c) Jaipal Singh
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