निर्वस्त्र चाँदनी की दमकती रोशनी
धवल उज्जवल शीतल मन-मोहनी।
निर्जन,ध्वनिशून्य,एकांत वन
स्वछंद मैं, तुम और हमारा मन।
सिर्फ मैं और तुम
सुनें सुकोमल संगीत
अबाधित बहता झरनों का
सरसराती बयार छू खिलखिलाती पत्तियों का।
पवन मदमस्त सुगंधित झूमती लहरों से
आलिंगन सा करती
स्वतः लिपटकर हमसे तुमसे
करती बेसुध चुंबन-प्रेमालाप
बस यही है हमारा-तुम्हारा
असीमित उन्मुक्त प्रेमाकाश।
चलो करें गमन
चलो करें प्रकृति को नमन।
मातृछाया, प्रेमाञ्चल
यही है यही है शांतिधाम
स्वर्णिम,स्वर्गीय निश्चिंत विराम-विराम
चलो करें हम अरण्य विश्राम।
ह्रदय पर भीड़ सपनों की
अपनों की अब है भारी
व्यर्थ राग-विराग का है अंतर्द्बंद सतत जारी।
नही कोई आजीवन साँसों का साथी
सिर्फ तुम्हारे, सिर्फ तुम्हारे
क्यों हम तब रुके हुए हैं
छद्म सहारे, छद्म सहारे।
चलो निर्बंध हो हम करें बहिर्गमन
चलो हम-तुम, तुम-हम करें
मुक्त वन रमन, चिर गमन-चिर गमन।
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