My Humming Word

  1. Poem

मन में बसी हो

तुम मुझसे इतनी दूर
आकाश गंगा के दो छोर
भावनाओं के इन्द्रधनुषी रंगों के बीच
सीप में मोती जैसे, फूल में सुगन्ध सी
मीत, घने काले मेघों के बीच बिजली सी
तुम मेरे मन में बसी हो.

तुम थी, मैं था, सपने थे
तुम न रही, मैं न रहा, सपने टूटे
फिर भी बार बार, सपने बुनता हूँ, सपने जीता हूँ,
शायद भरने को जीवन का रीतापन,
मीत, भोर के स्वप्‍न सी मादकता लिए
तुम मेरी पलकों में बसी हो.

भूलो मुझे नहीं, चाहे रहो कहीं
मुझे नयनों में रखो या दिल में
जैसी भी संभव हो पास रहो जीवन में,
साथ थे कभी यह अहसास भर बाकी है,
मीत रजनीगंधा सी महक लिए
तुम मेरी सांसों में बसी हो.

संभव है आकाश गंगा सी दूरी लाँघकर
कभी किसी रोज तुम तक आऊँ
और फिर बिना मिले बिना कहे,
यूँही वापस मुड़ जाऊँ
मीत, मधुर स्मृतियों के साथ
तुम मेरे मन में बसी हो.

 21,332 total views,  3 views today

Do you like Dr. Jaipal Singh's articles? Follow on social!
Comments to: मन में बसी हो

Login

You cannot copy content of this page