My Humming Word

  1. Poem

दिवास्वप्न

Editor’s Choice

शिशिर ॠतु की आबोहवा, एक और ठंडी भिनसार
गुनगुनी एवं आभामयी रविप्रभा का चहुंओर विस्तार
सरसब्ज लाॅन में पसंदीदा आरामकुर्सी में सिमटकर
उसके दिवास्वप्नों में खोया हुआ, खुद से बेखबर मैं
विगत वर्षों के गुजरे पल, व तमाम खट्टी-मीठी यादें 
कभी हर्षोल्लास, तो कभी व्यग्रता व विषाद के पल 
स्वप्निल जीवनी, मानो उसी से शुरू उसी पर खतम।

आँखे बंद हैं किन्तु मेरा मन विचरण करने लगा है
उसका वह अद्भुत, विलक्षण एवं बेजोड़ व्यक्तित्व
चाँद सा रोशन चेहरा, वह झिलमिल-स्वप्निल आँखें
परियों जैसी कशिश, किसी देवदूत सी दिव्य आभा
हमारी संक्षिप्त सही, पर वह मधुर अंतिम मुलाकात
फिर उसके दूर जाते धीमे कदमों की मोहक चाप 
प्रतिध्वनि मानो आज भी मन-आँगन में गुंजायमान है।

सुनहरी धूप उसकी सम्पूर्णता की अनुभूति कराती है
महकती – मधुर चांदनी में उसका प्रतिबिंब देखता हूँ
जाने कब से उसकी यादें समेटे, एक दिशाहीन सा मैं
निरंतर उसके सानिध्य, साथ की अभिलाषा में जीता हूँ
वह कहीं पास ही है अपनी चिरस्थाई मुस्कान के साथ
मानो एक गहरी तन्द्रा से जागकर ऐसा सोचने लगता हूँ
उसकी निकटता और सानिध्य के अहसास से बढ़कर
जगत में कुछ भी इतना मोहक और मनभावन नहीं है।

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