तुम्हारी सूरत और सीरत की कशिश थी,
या फिर मेरी चाहत की शिद्दत का कमाल.
एक व्यग्र हृदय एवं मन की उलझनों के
चक्रव्यूह में उलझा मानों एक मकड़जाल.
चाहे जितना तुमको भुलाने की कोशिश की,
तुम हमेशा ही मुझको उतना ही याद आए.
तुम्हारी यादों की परछाई संग चलते-चलते,
देखो न आज हम कितनी दूर निकल आए.
एक बेहद लम्बा और पेचीदा जीवन बीता है,
केवल बस तुम्हारी यादों और वादों की नाईं.
एक चाहत कभी दिल से निकली ही नहीं,
अब तो जीवन की शाम भी ढलने को आई.
2,926 total views, 42 views today
No Comments
Leave a comment Cancel