अपने संस्कारों व अर्जित ज्ञान के बल पर,
देश व समाज में खुद का स्थान ही नहीं,
अपितु उसने जीवन में कौशल भी सीखा;
अपने प्रियजनों, रिश्तों और संबंधों को,
जीवन भर के लिए, एक ईमानदारी से
संभालना, सहेजना और पोषित करना।
परन्तु वह आजतक नहीं समझ पाया,
उनको, जो एक गिरगिट की तरह अक्सर,
खुद की सुविधा और माहौल के अनुसार,
जल्दी-जल्दी अपने रंग-ढंग बदलते रहते हैं;
दोस्ती और रिश्ते में चढ़ाव-उतार ले आते हैं;
हम समझते कुछ, वह साबित कुछ होते हैं।
10,717 total views, 39 views today
No Comments
Leave a comment Cancel