यह है मेरे दुःख की बड़ी गाथा, सुनोगे तो रो लोगे पकड़ माथा।
किस्मत में जो लिख दिया विधाता, टाल न सके कोई पिता माता।।
रहने दो ढके मेरे जिगर के दाग, मत छेड़ो मैं हूं भाषा हिंदी।
कभी थी मैं भी सुहागिन हिंद में, शोभायमान थी भाल पर बिंदी।।
जब से फिरंगी भाषा हिंद आई, मेरी जवानी बह गईं कालिंदी।
अंग्रेजी सह लूंगी संग रह लूंगी, पर दोष मढेगा हिंदी समलिंगी।।
जैसे तैसे जी लूंगी गम पी लूंगी, पर बदनाम हूं कि लत मेरी है रिंदी।
इतनी विरोधाभाषी व्यथाओं बीच, चेहरा कैसे खिले अरविंदी।।
चौदह सितंबर उन्नीस सौ उनचास को, मुझको स्वीकारा राज भाषा।
पर कार्यकारी आज भी है अंग्रेजी, मैं रह गई बनकर महज़ तमाशा।।
ज्यों साधु करते रामकथा वाचन, सालाना दौरान ए चतुर्मासा।
वैसे ही हिंदी पखवाड़ा में हिंदी का, ढोल बजता अच्छा खासा ।।
लंबे भाषण, वादे, प्रतिज्ञाएं, हर कोई वाक सेवा का प्यासा।
समारोह, गोष्ठी, कार्यशाला पिंजरे में, तोड़ रही मैं हिंदी श्वासा।।
सच में किसको अच्छा नहीं लगता, गोरा रंग और गोरी भाषा।
सोचो, ऐसे मानसिक ताने बाने में, कैसे हिंदी होगी बिपासा।।
नर्सरी, निचली कक्षाओं से लेकर, विश्वविद्यालय तक छाई आंग्ल भाषा।
फिर तो हिंदी विकास की ख्वाइश, रखना है आशा के विरुद्ध आशा।।
मैं हिंदी हूं कैसी अभागी, पहले मुझे खोया अब जा रहा तलाशा।
बहुत सहे गोष्ठी,कार्यशाला, पखवाड़े, मुझे नहीं और अभिलाषा।।
इस दर्द भरी दास्तां के सम्मुख भी, है चश्म शुष्क और मुख में उबासी।
तो हिंदी प्रेमी ही नही, पत्थर की दीवारों से भी चू रहे अश्क-ओ-उदासी।
मुझे गले लगाता सिर्फ थका हारा, देश का मजदूर, मजबूर अन्नदाता।
किन्तु नामी गिरानी अमीरों की तो, आज भी अंग्रेजी ही भाग्य विधाता।।
मुझे नागवार पूजा फूल माला, न भाए प्रशंसा भोग मिठाई बताशा।
दिखाकर दशकों से उन्नति झांसा, मुझे मत दो बार बार हताशा।।
हूं आभारी हिंदी प्रेमी जनो का, पढ़े-जाने सबने मेरे विचार नए बासी।
नहीं चाहिए इनाम शाबाशी, माफ मुझे करना अगर हुई भूल जरासी।।
फिर मेरी क्या है अंतिम इच्छा, जानने की हो गर सच्ची जिज्ञासा।
तो सुनो मेरी भारत जनित संतानों, काम करो हिंदी में बेतहाशा।।
मुझे नहीं मान्य दिखावे का आदर सत्कार, मेरी मात्र एक अभिलाषा।
मुझे लिखे पढ़े तू, तेरे पिता-माता, तेरे बेटी-बेटा, पोता और नवासा।।
कालिंदी = यमुना, रिंदी = पियक्कड़पन, बिपासा = असीमित, व्यास नदी, नवासा = नाती, बेटी का बेटा, चश्म = आंख, अश्क-ओ-उदासी = आंसू व उदासी, अश्क = आंसू
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