सुनो हमारे प्यारे प्यारे दास जी,
अब कुछ नहीं बाकी खास जी,
लिखने को हमारे अब है पास जी,
सब शब्द हो गए इकदम खलास जी.
किसी से कुछ नहीं बची है आस जी,
नीचे है धरती ऊपर आकाश जी,
अब आप फेंको कुछ प्रकाश जी,
आभार हैं हमको अहसास जी.
शब्द बिना कैसे हो बकवास भी,
जमाना ने खोए होश हवास जी,
खुद पे नहीं खुद का विश्वास जी,
आदमी चाहता सब भोग विलास जी.
निठ्ठलेपन का नहीं आभास जी,
चाहता सिर्फ अपना ही विकास जी,
सपनों में दौड़ता श्वास उच्छवास जी,
इच्छा में बसा बस जोर उत्प्रवास जी.
आदमी लोभ से बनी जिंदा लाश जी,
धरती पर करते जलवायु विनाश जी,
ऐसे में कौन करे खुद की तलाश जी,
आदमी देख फूल भी खोए बास जी.
एक आदमी पर झगड़े बहु सास जी,
सब देख मन करे चलूं वनवास जी,
ध्यान समाधि में सदा करूं निवास जी,
आत्म दर्शन करूं हर श्वास प्रश्वास जी.
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