My Humming Word

Month: January 2023

  1. Poem
कुछ अपने थे जो छोड़ गयेकुछ अपने जो जाने वाले हैंहम किस-किस की खैर करें खुद हम भी उसी कतार में हैं  जो कल आए थे आज चलेजो अब आए हैं कल जाएंगेफिर कुछ ऐसे अपने भी तो हैं जो असमय-कुसमय छोड़ चले जब यह हालत इस जग की हैऔर जब जीवन इतना नश्वर हैहम क्योंकर इतनी […]
  1. Poem
स्वप्न भी आवश्यक हैं, जोदेते हैं पंख, गति और उड़ानहमारे आवेगों एवं संवेगों कोइच्छाओं और आकांक्षाओं कोऔर आज जब मैं पलटता हूँअतीत के पन्नों को, यादों को…लगता है मैं भी एक स्वप्नदृष्टा हूँ तो आज इस वर्ष की विदाईवेलाएवं नववर्ष के वंदन-अभिवादन के उत्साह एवं  समारोह  पर बसयही हार्दिक चिंतन और शुभेच्छा हैकि आपके सपनों को […]

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सपने आते हैं मुझे भयावह से डरावने देखता हूँ दृश्य-कल्पित खुली-खुली आँखों से सूखे-सूखे रूखे-रूखे विशाल जंगल मुरझाए वृक्षों पर अधचिपकी सी खुरदुरी छाल ठूंठ-मूक खड़े अकेले झुंड में बिन बहार स्थिर स्पंदनहीन विवश सहने नियति के प्रहार.  देखे हैं मैंने जहाँ होते थे कभी जीवन से भरे रंग-बिरंगे हरे-हरे झूमते-नाचते लहलहाते-खिलखिलाते गीत गाते खुशबू बिखराते झुंड वृक्षों के गूँथे हुए सामीप्य के चुंबन में बतियाते-टकराते आपस […]
दरिया बीच एक दिन, सहसा उठा चक्रवात।जो थे मझधार मौजों पे, उन्हें न लगा आघात।।जो खड़े साहिल पे थे, डूबे मस्ती में दिन रात।पल में प्रलय होने लगा, डूबने लगे हाथो हाथ।। जो चल रहे थे वो बच गए, कुशल रास्ता खोकर।जो खड़े थे वो फना हो गए, खड़े ही खाकर ठोकर ।।जो मझधार में […]

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सपने आते हैं मुझे भयावह से डरावने देखता हूँ दृश्य-कल्पित खुली-खुली आँखों से सूखे-सूखे रूखे-रूखे विशाल जंगल मुरझाए वृक्षों पर अधचिपकी सी खुरदुरी छाल ठूंठ-मूक खड़े अकेले झुंड में बिन बहार स्थिर स्पंदनहीन विवश सहने नियति के प्रहार.  देखे हैं मैंने जहाँ होते थे कभी जीवन से भरे रंग-बिरंगे हरे-हरे झूमते-नाचते लहलहाते-खिलखिलाते गीत गाते खुशबू बिखराते झुंड वृक्षों के गूँथे हुए सामीप्य के चुंबन में बतियाते-टकराते आपस […]

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प्रतिवर्ष दशानन दहन किया, मन के रावण का नाश नहीं,अगनित सीता अपहृत होती, निज मर्यादा का भास नहीं।हम एक जलाते दशकंधर, शत दशकंधर पैदा होते,करते जो दहन मन का रावण, हर गली में रावण न होते। इस शक्ति पर्व का हेतु है क्या, है ब्यर्थ दिखावे की शक्ती,निर्बल को संबल दे न सके, अन्याय से […]

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