लाख समझाने पर भी नहीं समझता आईना मेरा
अंदर की टूटती नसें भी उकेर दीं बनाकर उसने दरकती लकीरें
वो जो बैठे हैं गहरे दिल में मेरे
आईना मेरा उन्हें भी हूबहू दिखाता है.
कैसे छिपाऊँ दर्दे-दिल को सामने जब बैरी-मितवा हो ऐसा
चुप हूँ मैं, चुप हैं वो, मंजर है खामोशी का यह कैसा.
दिल की जिद है रग-रग में रखूँगा उन्हें अपने पास
आईना भी पर कसम ले उभाड़ता
जस का तस बाहर उसे सबके साथ
दिल को तोड़ूँ या आईने को दोनों ही बहुत नाजुक हैं
बदले में या कहीं खो जाऊँ कब्र में दफ्न होकर.
कोई नही सिवाय तड़पती साँसों की चुप्पी मेरे साथ
प्यार को पूजतीं धड़कनें चुप भी मगर रहने नहीं देतीं मुझे.
कौन वो हस्ती है जिसने बनाया है मुझे
हजार इल्तिजा के बाद भी बदल न सकी जो मुझे.
अब तो जीना भी कुछ यूं ही जीना है
सूखे दरख्त ज्यों करें बारिश का इंतजार
कब गिर पडू इबादत करते-करते
सूख सी गई है दिल की जमीं
उम्मीदों की नमीं में खोजते-सहेजते नए पत्ते.
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