तुम मुझसे इतनी दूर
आकाश गंगा के दो छोर
भावनाओं के इन्द्रधनुषी रंगों के बीच
सीप में मोती जैसे, फूल में सुगन्ध सी
मीत, घने काले मेघों के बीच बिजली सी
तुम मेरे मन में बसी हो.
तुम थी, मैं था, सपने थे
तुम न रही, मैं न रहा, सपने टूटे
फिर भी बार बार, सपने बुनता हूँ, सपने जीता हूँ,
शायद भरने को जीवन का रीतापन,
मीत, भोर के स्वप्न सी मादकता लिए
तुम मेरी पलकों में बसी हो.
भूलो मुझे नहीं, चाहे रहो कहीं
मुझे नयनों में रखो या दिल में
जैसी भी संभव हो पास रहो जीवन में,
साथ थे कभी यह अहसास भर बाकी है,
मीत रजनीगंधा सी महक लिए
तुम मेरी सांसों में बसी हो.
संभव है आकाश गंगा सी दूरी लाँघकर
कभी किसी रोज तुम तक आऊँ
और फिर बिना मिले बिना कहे,
यूँही वापस मुड़ जाऊँ
मीत, मधुर स्मृतियों के साथ
तुम मेरे मन में बसी हो.
21,241 total views, 3 views today
No Comments
Leave a comment Cancel