आदम और हव्वा, आज भी प्रासंगिक है,
क्योंकि जिसे विद्वेष है ईश्वर से
और उसकी बनायी हर रचना से,
जिसने फुसलाया प्रथम पुरुष – प्रथम नारी को,
वह शैतान ‘विषधर’ कई रुपों में
धरती पर आज भी जिंदा है.
कभी वह बनता है साम्प्रदायिकता का दानव
ललचाता है फुसलाता है आदमी को
खाने को निषिद्ध फल –
‘बाबरी मस्ज़िद’, ‘राम जन्मभूमि’, ‘कश्मीर’
कभी भाषा, क्षेत्र, प्रादेशिकता का विवाद,
खींच देता है रेखाएं हिन्दू-मुसलमान की,
हिन्दू-सिख या फिर सिख-मुसलमान की,
मानव ही बन जाता है, मानवता का दुश्मन,
हिंसा, लूट और आगजनी बनते हैं प्रतीक
बर्बर आदिम पाशविकता की.
21,544 total views, 13 views today
No Comments
Leave a comment Cancel