My Humming Word

मैं गया था वहां तक तुमसे मिलने,
जहाँ जमीं-आसमां मिलते हैं, 
जहाँ रोशनी सूरज के आलिंगन में,
छिप जाती है प्रियतमा बनकर,
चंदा जहाँ सकुचाता सा उठता है धीरे-धीरे,
मृदुल, स्नेहासिक्त, शीतल सी द्रष्टि देने,
जहाँ तारे हमारे मिलन की प्रत्याशा में,
उछलते, टिमटिमाते, लुका-छिपी के खेल में,
सारा आसमां प्रफुल्लित करते हैं.

मैंने देखा वहां,
भौंरे जाग रहे थे,
संगीत की अगवानी लेकर.
तितलियाँ श्रृंगार कर डोल रहीं थीं,
खुशबू भींनी-भींनी,
अद्रश्य नृत्य में मग्न,
साँसों में भर रही थी,
मादक जिज्ञासा और,
प्रतीक्षा के अंतिम क्षणों की तीव्रता.

पवन ने जैसे खुले छोड़ दिए,
उमंगी-बारात के सतरंगी अश्व,
दिव्य स्वप्न से भरी-सजी यह यात्रा,
आतुरता के पग से बढ़ती रही,
और तुम मृगतृष्णा सी,
प्रतीति जगाकर,
दौडाती रहीं मुझे,
अतृप्त, स्पन्दनहीन, निश्चेतन कर.

Image (c) GettyImages

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Comments to: अगम्य

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