सपने आते हैं मुझे
भयावह से डरावने
देखता हूँ दृश्य-कल्पित खुली-खुली आँखों से
सूखे-सूखे रूखे-रूखे विशाल जंगल
मुरझाए वृक्षों पर अधचिपकी सी खुरदुरी छाल
ठूंठ-मूक खड़े अकेले झुंड में बिन बहार
स्थिर स्पंदनहीन विवश सहने नियति के प्रहार.
देखे हैं मैंने जहाँ होते थे कभी
जीवन से भरे रंग-बिरंगे हरे-हरे
झूमते-नाचते लहलहाते-खिलखिलाते
गीत गाते खुशबू बिखराते
झुंड वृक्षों के
गूँथे हुए सामीप्य के चुंबन में
बतियाते-टकराते आपस में
फूलों-फलों से लदी डालियों पर
फैलाते जीवन की अतृप्त अनंत शृंखला.
महका-महका सा रहता था सारा संसार
सारा आकाश सारा पाताल
सीमाएं जहाँ तक जा सकती थीं
दृष्टि व कल्पना को दे विस्तार
साँसों में सर्वत्र था शीतल स्निग्ध प्यार
अहा कितना मनोहर था वह निर्बाध प्राकृत आकार .
सूखे दरख्तों से अब नहीं बह पाते आँसू
व्यथा के शब्द भी गढ़ नहीं पाते कुंठित कंठ
असमय ही हुआ जैसे वनचर बृद्ध
डरा हुआ सा निःश्वास शून्य अभिशप्त.
जल-जमीन-जंगल का यह निर्दयी दोहन
अक्षम्य पाप का किया यह संयोजन
मानव तुझे चुकाना तो होगा ही.
व्याकुल हुई सर्वत्र धरा अब
फट रहे मेघ आकाश क्रुद्ध अब
विचलित हुए सागर, नदी के पाट अब
धैर्य का बंधन टूटता लगता अब
तुम बनाओ रास्ते आकाशीय कितने
बस न फिर भी सकोगे चाँद-सूर्य पर.
विज्ञान कभी प्रकृति को ना बाँध पाएगा
नही समझोगे यह तो जलजला आएगा
तिनके की तरह बह जाओगे सब
कुछ भी नहीं तब पास बच पाएगा.
समय कह रहा है तुझसे
विकास अपनी समझ का कर
रोक दे आसन्न विध्वंस की सारी क्रियाएं
ये मिसाइल बारूद की जहरीली हवाएं
आत्मघाती दर्प से हार कर मिट जाएगा
तू अगर संभला नहीं तो खंडहर बन जाएगा
तू अगर सँभला नहीं तो खंडहर बन जाएगा.
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