दरिया बीच एक दिन, सहसा उठा चक्रवात।
जो थे मझधार मौजों पे, उन्हें न लगा आघात।।
जो खड़े साहिल पे थे, डूबे मस्ती में दिन रात।
पल में प्रलय होने लगा, डूबने लगे हाथो हाथ।।
जो चल रहे थे वो बच गए, कुशल रास्ता खोकर।
जो खड़े थे वो फना हो गए, खड़े ही खाकर ठोकर ।।
जो मझधार में थे वो बचे, मौज पे सवार हो कर।
साहिल पर खड़े पलट बहे, जान से हाथ धो कर।।
कल ही दरिया के बीच, अचानक उठा तूफ़ान।
जो थे मझधार मौज पे, वो कहां थे अनजान।।
करे साहिल पर हंगामा, उनको कहां यह ज्ञान,
दरिया भीतर मौजों में, कितना युद्ध घमासान।।
[मौज = लहर, तरंग, wave; साहिल = किनारा, तट, bank; हाथो हाथ = at once, in no time; कुशल = safe; ठोकर = stumble; मझधार = in the centre of whirlpool, in mainstream; पलट = capsized; जान से हाथ धोकर = by losing life; दरिया = नदी, river; सहसा = suddenly; चक्रवात = cyclone]
Image: Wikipedia
2,522 total views, 20 views today
No Comments
Leave a comment Cancel