मंत्री फिरे बावला लियों, हर दिन गाड़ी बत्ती लाल,
कानून बिगड़ हुआ, हुआ घणा बेजा हाल।
रिश्वतखोरी नियम बन गई, चरे नेताजी चोखा माल,
जवा ज्यों मिनखों ने चूसे, डौडी टोपी डौडी चाल।
राज मेहकमो में घुस गिया, सब के सब भाई दलाल,
रिश्वतखोरी सूं, जनता ने करे, बाबु-अफ़सर रोज़ हलाल,।
ऐ तो कोई नेता नहीं भाई, सब है मोटा सत्ता दलाल,
जनता रे दुःख रो औने, नहीं है थोड़ो-बहुत भी ख्याल।
न हैं कोई जनता री औने, फिकर नाम भी मजाल,
बहिन बेटी री इज्जत हो रही, चौड़े धाड़े रोज हलाल।
भाई भाई ने लड़ाय नगट, खड़ा करे नित नया बवाल,
ख़ुद ही जवाब बनावे नेता, ख़ुद ही करे झूठा सवाल।
नेता राज सूं मुगती पाणी हैं, आप जागो राईका लाल,
हिये जिये शिव-शम्भू बसाय, उधेड़ो नेता राज री खाल।
लोक राज रे वास्ते एक बार, कर दो थे मोटो धमाल,
राइकों रा लाडलों दिखा दो, जग में राईका रो कमाल।
बाळ दो मुंडो मृत्युभोज रो, अमल डोडा गऊ रगत समान,
36 कोम राजस्थान मानेला, राइकों रो जुग जुग अहसान।
बाल विवाह, बाल हत्या समझो, बनाओ राईका री पहचान,
ये प्रण थांरा अमर रहवेला, चाहे काया मर मिटे श्मशान।
समाज सुधार पहला राजनीति, ज्यों जोते बळदों आगे गाड़ी,
ऐसा ऊंदा काम कद सूझे भाई, जद कर्मों आडी आवे हिलाड़ी।
27 अगस्त कई आया कई गया, कई कुंभ आया और गया,
कुंभकरण-रावण भी मर मिटा, राख पर रावण चबूतरा भया।
मृत्युभोज, अमल डोडा, तस्करी, बालविवाह सूं बंजड़ समाज,
ऐसी खारच जमीं में राजनीति रा, बीज री राम नहीं राखे लाज।
अठे तो बत्ती रो रंग लाल सिवाय, दूजो दिखे नहीं कोई आज,
एक दूसरा माते झपटा इयों मारे, ज्यों चिड़ियों ने झपटे बाज।
त्याग, तपस्या,नीति, धीरज बिना, कदई ने सरेला उत्तम काज,
हया दया भाव, हिया सूं उपजे, क्या करे बापड़ा साज-बाज ।
ऊंट ज्यों अरड़ाटा दिन रात करे, लाल बत्ती री जुरड़े खाज,
समाज भला वास्ते क्यों चहिजे, थांने राजनीति रो मैलो ताज?
जागेला नींद, कुंभकरण सूं, रावण चबूतरे अगस्त सताइस,
सैकड़ों री अंखियों में नाचे, राजनीति पद री मोटी ख्वाइश।
(The poem in a Rajasthani regional dialect beautifully narrates how the leaders of the political parties enjoy a luxurious life with various perks and privileges on public money while the common people are deprived of even the basic needs and suffer due to their apathy, mismanagement and misgovernance.)
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