My Humming Word

  1. Poem

श्रद्धांजलि

“सुरता” कहे सुनो “वीरू” माता,
आप है पहली गुरु, भाग्य विधाता ।।
“सुरता” कहे मेरे दूसरे गुरु दाता,
“गुणेश” जी रहे सबसे बड़े भ्राता ।।

उम्र मेरी 5 हुई विधवा हुई माता।
पिता कमी को भुला दिया भ्राता ।।
खुद नहीं खाता पर, मुझे खिलाता ।
ऐसे भाई जैसे, कहां जग दाता!

रात दिन एक कर, खूब कमाता ।
निक्कर कुर्ता आप, मेरे सिलवाता ।।
किताब कॉपी कलम, मुझे दिलवाता ।
खुद रात काली कर, मुझे पढ़ाता ।।

बिगड़ी उजड़ी बात, मुझे समझाता ।
कोई मुझे डांटे तो, आंखे दिखाता ।।
मालवा में खूब, गौ माता चराता ।
मल्लों को पल में, धूल चटाता ।।

अपार प्रेम से मुझे, खूब लाड़ लड़ाता ।
जो स्कूल मैं चाहता, मुझे वहीं पढाता ।।
उन्हें बल संग दाता, बुद्धि बक्शया।
सद कर्म किया, कभी न पछताया।।

दिल खोल खुश हो, सबको खिलाया।
चले सदा नीति, किसी का न खाया।।
पत्थर सम समझा, धन माल पराया।
सच दिया सहारा, झूठ को डराया ।।

आभार प्रकट करे, “सुरता” छोटा भाया ।
रंक से मुझे भाई, आपने राजा बनाया ।।
कष्टों से खुद की काया, आपने छनाया ।
पर मिनख से मुझे आप, ख्वाजा बनाया ।।

“गुण भाई” आप “सुरता” को ऐसे पढ़ाया,
कि फर्श से उसे उठा अर्श चढ़ाया ।।
आपने जो जन्म, परमार्थ लगाया। 
मां बाप कुल सदा, नाम बढ़ाया ।।

कायनात चमन में, इक गुल खिलाया ।
गुल मुरझाया चहुं दिशा, खुशबू छितराया ।।
जन्म मरण दो बिंदु बिच में, जीवन कहलाया ।
आत्मा शाश्वत सच, काया भ्रम माया ।।

मार्च 18, 2023, रात्रि 2 बजे, प्रभु की माया।
संग “गुणेश” वैकुंठ चले, छोड़ पार्थिव काया ।।

Image (c) Surata Ram

 16,812 total views,  53 views today

Comments to: श्रद्धांजलि

Login

You cannot copy content of this page