My Humming Word

 तुम चलो तो 
चलो तो तुम बिलकुल अकेले 
आधुनिक सभ्यता के पाठ से सीखी 
चतुर विद्या को छोड़कर 
निपट अकेले रिक्त-रिक्त से 
पूर्वाग्रहों को त्यागकर 
अपने सदृश्य जीव की संगना से दूर हट 
एकदम अकेले 
मृत मंजिलों-इमारतों में सड़ रहीं वर्जनाओं के बाहर 
तुम चलो तो. 
एक निस्सीम आकाश है 
नीलाभ, पारदर्शी 
कल्पना के आखिरी छोर तक अबूझ 
रहस्यमयी 
जिज्ञासा को कुदेरता
अनंत से साक्षात्कार की प्रतीक्षा तक. 
स्फटिक निशा की रजत रोशनी
जगमगाती पट्टियाँ तारों के झुंड से लदी-लदी 
निहारते नेत्रों में भरती सुखद घड़ी. 
शीतल नम्र स्पर्श करती पवन 
शिशुवत आलिंगन की उत्कंठा में झूमते वृक्ष 
डोलतीं डालिओं पत्तों की सरसराहट में 
गूँजता मंगल वन्यगीत
स्वागतम स्वागतम स्वागतम मेरे मीत. 
ठंडी बर्फीली भूरी-भूरी शुभ्र सी 
समीर के तह-दर-तह जमते जमीं पर कण
मानो करा रहे अम्बर का धरा पर भ्रमण. 
तुम चलो तो अकेले
मूक शून्य से बातें करते
कोमल-कोमल पर्णों को छूते 
प्रस्फुटित नव-पुष्पों की सुगंध पीते. 
तुम चलते चलो अकेले अकेले 
नीचे बहती नीर श्रंखला के समागम तक 
निहारते चलो जल-दर्पण के उस पार 
स्वच्छ प्रस्तर-पिंडों की लंबी कतार. 
चहचहाते पक्षियों परिंदों की मधुर लय 
निर्भीक वन्यजीवों का गर्वीला आवागमन    
ऊँची-नीची हरी-भरी सजी-सजी सी 
वैविध्य लिए विस्तीर्ण पर्वत मालाएं 
तुम्हें ले जाएंगी दूर दिव्य क्षितिज के पास 
पा सकोगे जहां तुम अनन्य आनंद का आभास. 
तुम चलो तो अकेले 
प्रकृति-परिक्रमा की सौगंध ले 
पृथ्वी के सौन्दर्य रक्षार्थ शपथ ले 
सृष्टि के संरक्षण का प्रण ले 
मानवजाति के बचाव का व्रत ले 
एकांत उत्प्रेरित करेगा
पावन बसुधैव कुटुम्बकं का सृजन
चलो तुम इसीलिए अकेले-अकेले 
तुम चलो अकेले
तुम चलो तो.


 6,569 total views,  1 views today

Comments to: बुलावा

Login

You cannot copy content of this page