My Humming Word

सूख चुके हैं प्रेमपात्र सब, मदिरा की गागर दे दो 
भूल चुका हूँ कौन कौन है, विस्मृति का आश्रय दे दो. 
ईश्वर सबकुछ भूल गया है, कृष्ण नही अब रथ पर हैं
सत्य-प्रेम की राहों पर हम, फिर भी काँटे पथ पर हैं. 
जीवन बंधा-बंधा सा क्यों है, हाहाकार मचा यह क्यों है 
मानव संबंधों के तलतम  में, यह भूकंपी हलचल क्यों है. 
बाहर-बाहर कितना सुंदर, अंदर क्यों वीभत्स भरा है
अतृप्ति अविश्वास के मद में, मानव क्यों तू निकृष्ट गिरा है.

 फूलों की बन कवच सुरक्षा, काँटे कभी न उनको चुभते 
कीट पतंग पशु व पक्षी, रहते साथ जिसे वे चुनते. 
खंड-विखंडित टूटा मानव, नैसर्गिक को विकृत करके 
एक आँख की दृष्टि दौड़ को, पूरा करता आडंबर भरके. 
अंधाधुंध चमक है बाहर, अंदर घोर अंधेरा है 
जाग जाग तू जाग ओ मानव, आगे धवल सबेरा है. 
आशा है उम्मीद भरी है, देर हुई अंधेर नही है 
समय शौर्य का है अनुगामी, उठ सबकुछ अब तेरा है. 

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