My Humming Word

  1. Poem

आत्मिक

लाख समझाने पर भी नहीं समझता आईना मेरा 
अंदर की टूटती नसें भी उकेर दीं बनाकर उसने दरकती लकीरें 
वो जो बैठे हैं गहरे दिल में मेरे 
आईना मेरा उन्हें भी हूबहू दिखाता है. 
कैसे छिपाऊँ दर्दे-दिल को सामने जब बैरी-मितवा हो ऐसा 
चुप हूँ मैं, चुप हैं वो, मंजर है खामोशी का यह कैसा. 
दिल की जिद है रग-रग में रखूँगा उन्हें अपने पास 
आईना भी पर कसम ले उभाड़ता 
जस का तस बाहर उसे सबके साथ
दिल को तोड़ूँ या आईने को दोनों ही बहुत नाजुक हैं 
बदले में या कहीं खो जाऊँ कब्र में दफ्न होकर. 
कोई नही सिवाय तड़पती साँसों की चुप्पी मेरे साथ 
प्यार को पूजतीं धड़कनें चुप भी मगर रहने नहीं देतीं मुझे. 
कौन वो हस्ती है जिसने बनाया है मुझे 
हजार इल्तिजा के बाद भी बदल न सकी जो मुझे. 
अब तो जीना भी कुछ यूं ही जीना है 
सूखे दरख्त ज्यों करें बारिश का इंतजार 
कब गिर पडू इबादत करते-करते 
सूख सी गई है दिल की जमीं 
उम्मीदों की नमीं में खोजते-सहेजते नए पत्ते. 

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