अराजकता मात्र एक राजनैतिक दर्शन ही नहीं
बल्कि एक बिगड़ी सामाजिक संस्कृति भी है
जिससे उन्मादित-ग्रसित एक अराजक इंसान
हठधर्मी के साथ हावी होने में रहता है संलग्न।
यह आदमी अपने विद्रोही व्यक्तित्व के कारण
करता फिरता है हरकतें बचकानी और विलक्षण
व्यक्तिपरक, बगावती, छिद्रान्वेषी व अहंकारी तेवर
फिर परस्पर अतिछादी तर्क व जुनून जैसे अवगुण।
यह आदमी अकसर रहता है आत्ममुग्ध, वञ्चक
बेरहम, मिथ्यावादी, असंशोधनीय, झूठा और धृष्ट
अपने ही लोगों पर करता है आघात – अभिघात
शारीरिक, सामाजिक, भावनात्मक एवं अर्थ-वित्त।
किसी सिस्टम, वर्ग अथवा समाज की इकाई बतौर
यह आदमी साबित होता है आखिर बस एक भार
अक्सर बेहूदगी की हद तक बेहद लापरवाह, यह
अराजकतावादी ही नहीं, समाज पर है प्रश्न चिन्ह।
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