My Humming Word

Poem

  1. Poem
Editor’s Choice Though it’s more of a political philosophyBut the anarchism, as a matter-of-factly,Is corelated in all socio-political situationEngaging excessive control and coercion. In an individual with a rebellious personaDriven by his antics of freedom, rebellion,Individuality, criticism, pride, justice, et al;Reason and passion overlap each other. Person is narcissistic, reckless, incorrigibleSwindling, impenitent, callous, liar & […]
  1. Poem
हार्दिक होली मुबारक, हो आप सबको।मैं सबके आनंद की, अर्ज करूं रब को।। अमृत पान नसीब हो, हर जुबां लब को।सजाए चांद सितारे, आपकी हर शब को।। देख सकें हर सबब में, भी बेसबब को।श्रृष्टि हित में छोड़ें, अपने मतलब को।। आपकी हर ख्वाइश को, मैं रखूंगा रब को।बता सकते हो, जब फुरसत हो आपको।। […]
  1. Poem
Editor’s Choice When cheerful folks exclaim ‘Holi Hai!’It triggers out an upsurge of emotionsA rainbow splash of fascinating coloursSwinging, vacillating and dancing folksBody drenched in wet and dry coloursExchanging & sharing sweets and giftsWittingly cracking laughter and smilesIn an ambience of fun & frolic for hours… Also, the very surroundings have souls –Cool, composed like […]

Good Reads

सपने आते हैं मुझे भयावह से डरावने देखता हूँ दृश्य-कल्पित खुली-खुली आँखों से सूखे-सूखे रूखे-रूखे विशाल जंगल मुरझाए वृक्षों पर अधचिपकी सी खुरदुरी छाल ठूंठ-मूक खड़े अकेले झुंड में बिन बहार स्थिर स्पंदनहीन विवश सहने नियति के प्रहार.  देखे हैं मैंने जहाँ होते थे कभी जीवन से भरे रंग-बिरंगे हरे-हरे झूमते-नाचते लहलहाते-खिलखिलाते गीत गाते खुशबू बिखराते झुंड वृक्षों के गूँथे हुए सामीप्य के चुंबन में बतियाते-टकराते आपस […]
दरिया बीच एक दिन, सहसा उठा चक्रवात।जो थे मझधार मौजों पे, उन्हें न लगा आघात।।जो खड़े साहिल पे थे, डूबे मस्ती में दिन रात।पल में प्रलय होने लगा, डूबने लगे हाथो हाथ।। जो चल रहे थे वो बच गए, कुशल रास्ता खोकर।जो खड़े थे वो फना हो गए, खड़े ही खाकर ठोकर ।।जो मझधार में […]

Worlwide

सपने आते हैं मुझे भयावह से डरावने देखता हूँ दृश्य-कल्पित खुली-खुली आँखों से सूखे-सूखे रूखे-रूखे विशाल जंगल मुरझाए वृक्षों पर अधचिपकी सी खुरदुरी छाल ठूंठ-मूक खड़े अकेले झुंड में बिन बहार स्थिर स्पंदनहीन विवश सहने नियति के प्रहार.  देखे हैं मैंने जहाँ होते थे कभी जीवन से भरे रंग-बिरंगे हरे-हरे झूमते-नाचते लहलहाते-खिलखिलाते गीत गाते खुशबू बिखराते झुंड वृक्षों के गूँथे हुए सामीप्य के चुंबन में बतियाते-टकराते आपस […]

Trending

लाख समझाने पर भी नहीं समझता आईना मेरा अंदर की टूटती नसें भी उकेर दीं बनाकर उसने दरकती लकीरें वो जो बैठे हैं गहरे दिल में मेरे आईना मेरा उन्हें भी हूबहू दिखाता है. कैसे छिपाऊँ दर्दे-दिल को सामने जब बैरी-मितवा हो ऐसा चुप हूँ मैं, चुप हैं वो, मंजर है खामोशी का यह कैसा. दिल की जिद है रग-रग में […]

Login

You cannot copy content of this page