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सपने आते हैं मुझे भयावह से डरावने देखता हूँ दृश्य-कल्पित खुली-खुली आँखों से सूखे-सूखे रूखे-रूखे विशाल जंगल मुरझाए वृक्षों पर अधचिपकी सी खुरदुरी छाल ठूंठ-मूक खड़े अकेले झुंड में बिन बहार स्थिर स्पंदनहीन विवश सहने नियति के प्रहार.  देखे हैं मैंने जहाँ होते थे कभी जीवन से भरे रंग-बिरंगे हरे-हरे झूमते-नाचते लहलहाते-खिलखिलाते गीत गाते खुशबू बिखराते झुंड वृक्षों के गूँथे हुए सामीप्य के चुंबन में बतियाते-टकराते आपस […]
दरिया बीच एक दिन, सहसा उठा चक्रवात।जो थे मझधार मौजों पे, उन्हें न लगा आघात।।जो खड़े साहिल पे थे, डूबे मस्ती में दिन रात।पल में प्रलय होने लगा, डूबने लगे हाथो हाथ।। जो चल रहे थे वो बच गए, कुशल रास्ता खोकर।जो खड़े थे वो फना हो गए, खड़े ही खाकर ठोकर ।।जो मझधार में […]

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सपने आते हैं मुझे भयावह से डरावने देखता हूँ दृश्य-कल्पित खुली-खुली आँखों से सूखे-सूखे रूखे-रूखे विशाल जंगल मुरझाए वृक्षों पर अधचिपकी सी खुरदुरी छाल ठूंठ-मूक खड़े अकेले झुंड में बिन बहार स्थिर स्पंदनहीन विवश सहने नियति के प्रहार.  देखे हैं मैंने जहाँ होते थे कभी जीवन से भरे रंग-बिरंगे हरे-हरे झूमते-नाचते लहलहाते-खिलखिलाते गीत गाते खुशबू बिखराते झुंड वृक्षों के गूँथे हुए सामीप्य के चुंबन में बतियाते-टकराते आपस […]

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