My Humming Word

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तलाश एक अदद बन्ने की

             पिछले वसन्त में जब मेरी पड़ोसन श्रीमती वर्मा ने मुझे बताया कि मेरी गुड़िया सी बेटी मिनी अब हाथ पीले करने लायक हो गई है तो मेरे चेहरे का रंग ही उड़ गया।  हे भगवान! धिक्कार है मुझ जैसी मां को जिसे अपने बेटी के सयानी होने की खबर अपने पड़ोसियों से लगे।  अरे अभी पिछले महीने ही तो मैने चश्मा लगवाया था, बुनाई की धुंधले दिखते फन्दे मुझ बड़े और स्पष्ट दिखने लगे थे।  लेकिन अपनी ही बड़ी होती हुई बिटिया को मैं वही नन्ही गुड़िया समझती रही।

             श्रीमती वर्मा के टोकने भर की देर थी कि गली-मोहल्ले मंे जिधर निकलो उधर ही पड़ोसने ठेले पर लदे आलू-प्याज के भाव की तरह ठुड्डी पर उंगुली रख कर पूछने लगती – श्भई कब कर रही हो अपनी बेटी की शादी ३३ण्ण्बहन जी तुम भी खूब हो इतना भरी पत्थर छाती पर रख कर तुम्हें भला नींद कैसे आती है।

             जैसे मेरी मिनी कोई श् ब्लैक मनीश् हो गई है जिसे घर में रख कर सुनते हैं लोगों की नींद उड़ जाती है।

             पड़ाइन चाची मुंह में पान चुभलाते हुये बोलतीं – श् तुम्हारे मिनी के बराबर की मेरी पोती दो गदेलों की अम्मा बन गई है।श्

             गजाधर की अम्मा तीन साल से बारहवीं में फेल हो रही अपनी कन्या कलावती के लिये बड़े जोर-शोर से वर ढूंढने में लगी थीं।  अपने भावी पति के लिये स्वेटर बनाती अपनी कन्या के लिये ऊन के गोले बनाती हुयी वे हाथ नचाती – श् भई बरसात और बेटी का ब्याह तो समय से ही सुहाता है।श्

             इन सब की बातें सुन-सुन कर मेरा कलेजा मंुह को आने लगता।  आखिर मुझे भी इसी गली मोहल्ले में रहना था।  लिहाजा नब्बे परसेन्ट से एम0ए0 पास, काॅम्पटीशन की तैयारी कर रही अपनी बेटी के कॅरियर की परवाह न करते हुये मैने निश्ंिचत पड़े अपनी पति की चाबी ऐठनी शुरू कर दी।

             -श् अगर साल भर के अन्दर ही मेरी मिनी का ब्याह तय नहीं हुआ तो मैं भी किसी सूखे कुएं में कूद कर अपनी जान दे दूंगी।श्

             पति ने लाख बेटी के कैरियर की दुहाई दी, उसके उच्चधिकारी बनने के सपनों का हवाला दिया, लेकिन मुझ पर भी अपनी पड़ोसिनों का जादू सर चढ़ कर बोलने लगा था।  आखिर उन्हें मेरे ष्त्रिया हठष् के आगे झुकना ही पड़ा।  – श्ठीक है, मिनी का बायोडाटा वगैरह तैयार करो, अबकी शनिवार दैनिक अखबार के आॅफिस जाकर मैट्रोमोनियल काॅलम में देकर आता हंू।श् पति टालने के अन्दाज में बोले।

– श् नहीं-नहीं हमारे परिवार में  ये अखबार वाले रिश्ते सूट नहीं करते।  देखते नहीं हमारी बुआ की बेटी और तुम्हारी मौसी की बेटियों की क्या हालत हुई। ३३ण् मेरे बाबू जी ने जैसे मेरे लिये तुम्हारे जैसा हीरा ढूंढ निकाला, वैसे ही तुम भी मेरी मिनी के लिये कोई सुयोग्य वर ढूंढो।श्

             अपने लिये इतनी तराशी हुई उपाधि पाकर भला कौन पति लेपेटे में नहीं आ जाता।  सो मेरे पति ने भी कमर कस ली।  मै भी पूरे मनोयोग से वर-तलाश की पूर्व तैयारी में जुट गई।  अटैची, बिस्तरबन्द, दो तीन टाइम चलने लायक लंच, डिनर सब पैक कर, ऊपर से नीचे अच्छी तरह लैस कर बाकायदा युद्व स्तर पर उन्हें तैयार किया।  फिर पंडित जी से शुभ मुहूत निकलवा कर टीका लगा कर उन्हें आॅपरेशन वर-तलाश के लिये झोंक ही दिया।

             वह दिन और आज का दिन।  उनकी स्थिति बंजारों की सी हो गइ्र्र है।  उधर वे बाहर निकलते, इधर मैं पिछले सफर के मैले-कुचैले कपड़ों का धो सुखाकर प्रेस कर एक अटैची तैयार रखती।  जैसे ही वे घर में नकारात्मक मुद्रा में कदम रखते, मैं वैसे ही उन्हें दूसरी अटैची थमा देती।  दूर पास की सारी रिश्तेदारियों के पते मैं पहले से ही जुटा कर रखती।  इस महा-प्रयाण में उनकी सारी सी0एल0 खत्म हो चुकी थी।  श्लीव विदाउट पेश् हो चुके थे।  बेटी के भविष्य के लिये जमा पैसे कुछ रेल विभाग और होटलों की भेंट चढ़ गये और कुछ उन रिश्तेदारों के धर मिठाई-फल ले जाने में जिनके यहां अक्सर वक्त-बेवक्त मेरे पति को शरण लेनी पड़ती थी।

             इतना कुछ खोने गंवाने के बाद भी आज स्थिति वहीं की वहीं थी।  लड़के वालों के तेवर देख कर न रोते बनता था और न हंसते।  वरों की स्थिति यह थी कि एक ही क्लास में कई साल तक रिसर्च करने की वजह से जिनकी आखों पर मोटे चश्में चढ़ गये थे उन्हें भी मृगनयनी ही चाहिये।  सर्वगुण संपन्न करना और भारी दहेज की प्रतीक्षा में असमय ही जीवन संध्या की ओर प्रस्थान करते, सिर पर चमकता चांद उगाये वरों को सुकेशी कन्या की चाह थी।  कहीं नौकरी के लिये दर-दर भटकते झुके कन्धे और पीठ पर उभरे कूबड़ लिये अष्टव्रकाकार बन्ने को प्रीती जिन्टा जैसी बन्नी की आवश्यकता थी तो कही बावन अंगुलीय छोटे से गुल्लीनुमा बलमा को – श्ऐश्वर्या रायश् जैसी – श्कनक छटी सी कामनीश् की कामना थी।

             कुल मिलाकर वरों की लंका में सब बावन हाथ के ही मिलते।  राजा भोज से लेकर गंगू तेली तक को बस मिस युनीवर्स ही चाहिये।  दूसरी ओर उनके पिताश्री लोग भी आये दिन मंहगाई के हिसाब से अपने अपने डिमांड चेक पर एक जीरो और बढ़ाते जाते।  कल तक जो दो पहिया से ही सन्तुष्ट हो रहे थे, आज उन्हें चार पहिया ही चाहिये थाी।  कल उनके सुपुत्र की कीमत पांच लाख थी तो आज दस लाख हो जाती।  उनका सीधा-साधा यही तर्क होता कि भई जिस हिसाब से रूपये का अवमूल्यन होगा, उसी हिसाब से हमारे लाल की कीमत बढ़ेगी।

             डाक्टर, इंजीनियर वर के पिताओं की बात ही मत पूछिये।  एक डाक्टर जितना पैसा एक बीमार को ठीक करके कमाता है, उससे अधिक पैसा तो वह किसी अच्छे भले को बीमार बनाये रख कर कमा लेता है।  इसी तरह एक इंजीनियर किसी निर्माण कार्य में जितना ही खोट करेगा, उसकी आय उतनी ही खरी होगी।  उसकी बनवाई इमारतें जितनी ही कमजोर हांेगी, उसका बैंक बैलेन्स उतना ही मजबूत होगा।  तो फिर ऐसे चित भी मेरी पट भी मेरी वाले धुरन्धर खिलाड़ियों के पिता हमारे जैसी अदना मक्खी अपनी नाक पर कैसे बैठाते ? लिहाजा हमारे पतिदेव ने भी हथियार डाल दिया।  श्भई बहुत मुश्किल है अपनी बिटिया के लिये वर जुटा पाना।श्

             थक हार कर हम निराशा के पावर कट में भटक ही रहे थे कि हमारे एक शुभचिन्तक आशा की जगमगाती फलैश लाइट लेकर आये।  -श्भई साहब, मैने शहर के एक ऐसे मैरिज ब्यूरो का पता लगाया है, जहां बड़ी आसानी से हर माडल सस्ते टिकाऊ और रीजनेबुल वर मिल जाते हैं। मगर जरा जल्दी कीजिये ये सेल शायद सीजनील है।श्

             अन्धा क्या चाहे दो आखें। मैने फौरन ही दही बताशे खिला कर इन्हें रवाना किया।३३ण्और वहां से लौट कर मेरे पतिदेव ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर मैंने सिर पकड़ लिया।  उस मैरिज ब्यूरो के कुछ दलाल घर-घर घूम कर अद्वितीय सुन्दरी की प्रतीक्षा में उम्र की चैखट के पार निकल गये वरों को उनके बाप से सेकेन्ड हैण्ड में खरीद लेते हैं। फिर उन्हें धो-पौंछ कर ठोंक पीट कर, रगड़ चमका कर वरों की मार्केट मंे उनके अच्छे दाम खड़े कर लेते हैं।  सफेद बालों को डाई कर देते हैं, गंजों को विग लगवा देते हैं कुछ दांतो से महरूम हो रहे प्रौढ़ो को श्डेंचरश् लगवा दिये जाते हैं, और अन्त में फिनिशिंग टच देकर उन्हें थोड़ी चढ़ने लायक बना ही दिया जाता।  इस धन्धे में उन्हें दलाली भी अच्छी खासी मिल जाती और वरों का तो खैर कल्याण ही हो जाता।

             इधर हम ओलम्पिक खेलों की तरह हर जगह मात खा रहे थे उधर गजाधर की अम्मा तेजी से गोल्ड मैडल की ओर बढ़ रही थी।  वह अपनी बिटिया की बात कहीं लगभग तय कर आई थी।  अब वह छत पर पापड़-चिप्स डालते हुये और मल्लाही छांटती जले पर नमक छिड़कती एक शाम गली में खड़ी गजाधर की अम्मा की विशुद्व तामसिक गालियां सुन कर मैं चैंक पड़ी।  आज तो उनके यहां वर पक्ष के लोग लड़की देखने आने वाले थे ।  सवेरे ही वह हमारा नया टी सेट मांग कर ले गई थी ।  पता चला कि अभी थोड़ी देर पहले उनके यहां लड़के वालें की तरफ से पन्द्रह सोलह स्त्री-पुरूष बच्चों समेत आये थे।  खूब ठंूस-ठूंस कर खाया-पीया, लड़की का हर ऐंगिल से मुआयना किया।  उठा कर, बैठा कर, चला कर गवा कर हंसा कर, अन्त में रूलाकर चल दिये। हे भगवान। गनीमत है कि अभी हमारे यहां लड़की दिखाने तक ही बात ही नहीं पहुंची थी।  मुझे आज पता चला कि श्बाबा तुलसी दास श् की ताड़न की अधिकारी नारी आज कल की विवाह योग्य कन्या ही रही होगी, जिसे आज गाय-भैसों की तरह मंडी लगाकर, ढोल की तरह ठोक बजा कर और अन्त में अस्पृश्या करार दे कर छोड़ दिया जाता है।

             लेकिन हिम्मत हार जाने से तो बेटी की बढ़ती उम्र को रोका नहीं जा सकता।  आखिर हमने अपनी चलता पुर्जा देवकी भौजाई की शरण ली।  वे शादियां तय कराने में उस्ताद थीं।  उनके बारे में एक बात मशहूर थी कि वे अपनी वाक् पटुता से अपनी महरी की कुबडी बेटी गुलाबो का रिश्ता अभिषेक बच्चन से भी करवा सकती हैं।  मेरी समस्या का भी उन्होंने फौरन समाधान कर दिया।  इसी शहर में उनके कोई फूफा ए0 जी0 आॅिफस में बाबू थे।  उनका बेटा किसी प्राइवेट फर्म में असिस्टेंट मैनेजर था।  इसी शहर की बात थी, दूसरे दूर की रिश्तेदारी भी निकल आई थी सो मैने अपने जाने की भी तैयारी कर ली।  सच कहूं तो मुझे अपने पति की व्यवहारिक बुद्वि पर भी कुछ-कुछ संदेह हो चला था।  हो न हो ये बात-चीत में कहीं न कहीं से कच्चे जरूर पड़ जाते हैं।  लिहाजा पति की जेब से गाहे-बगाहे उड़ाये गये पैसों से मैने मिठाई फल और मेवे वगैरह खरीदे।  रिशतेदारी का मामला था, अपना इम्प्रेशन तो जमाना ही था। चाय-नाश्ते के बाद जब हम असली मुददे पर आये तो सामने दीवान पर अजगर की तरह पसरे वर के पिता जैसे नींद से जागते हुये मेरे पति से बोले–श्देखिये भाई साहब शादी के लिये हमारी कुछ शर्तें हैं।  पहली शर्त यह है कि हम शादी में या तो चार पहिया लेंगे, नहीं तो ३३ण्श् हमारी तो सांस ही अटक गई।  चार पहिया की बात तो हमने सपने में भी नहीं सोची थी।  लेकिन तभी वे फिर नींद से जागे -श् नहीं तो हम मोटर साइकिल से भी काम चला लेंगे, हैं क्या करना है? चलेंगी तो दोनो ही।श् 

             हमारी रूकी हुई सांस फिर बाहर आ गई।  कुछ देर समाधिस्थ होने के बाद उन्होंने फिर आंखें खोलीं।  -श् देखिये भई साहब लड़की तो एवन होनी चाहिये यातों राखी सी गोरी और हेमा मालिनी सी सुन्दर, नही तो३३ण्ण् ।श्

             और हम फिर मन ही मन सिकुड़ने लगे।  हमारी मिनी भी आकर्षक कही जायेगी, लेकिन तारिकाओं जैसी तो ३ण्ण्और तभी उन्हांेने फिर अपनी गर्दन को भटका दिया।  – श्नही तो औसत दर्जे की भी लड़की चलेगी, हां रहना तो उसे घर में ही है, कौन सा शोपीस बना कर रखना है।श्

             हम उनकी इस दरियादिली पर मन ही मन धन्य हो रहे थे।  अचानक वे फिर तन कर बैठ गये। – श् देखिये भाई हमारी तीसरी शर्त है कि लड़की या तो नौकरी वाली होनी चाहिये नहीं तो ३ण् ।श्

             और हम फिर एक दूसरे का मंुह देखने लगे।  हमारी मिनी पिछले दो साल से कम्पीटीशन में बैठ रही है।  इस साल के पी0सी0एस0 का रिजल्ट अभी आने वाला है।  छोटी-मोटी नौकरी वह करना नहीं चाहती।  उसने तो बस आॅफिसर बनने का सपना पाल रखा है। ३ण्और तभी उन्होंने सन्तों की सी वाणी में उवाचा – श् नहीं तो साधारण गे्रजुएट लड़की भी ठीक रहेगी हां कौन सा यहां खाने-पहनने की कमी है।श्

             मैंने मन ही मन अपनी पीठ ठोकते हुये आंखो ही आंखो में पति पर अपनी विजय-मुस्कान उछाली।  – श् देखा, कितनी आसानी से बात बनती चली जा रही है।  हम उनकी ष्नही तोष् वाली शर्तों पर कितने खरे उतरते जा रहे हैं।श्

             ३३और तभी वे महान-आत्मा अपनी अन्तिम शर्त सुनाते हुये दीवान से उठ खड़े हुये – श् हां तो भाई साहब हमारी अन्तिम शर्त यह है कि श् उनका इतना कहना था कि मैं भी जोश में आ गई।  – श् अरे भाई साहब, हमे आपकी सारी शर्तें मंजूर हैं।  हमारी भी ले दे कर बस यही एक बेटी है। शादी में हम कोई कोर-कसर नहीं रखेंगे।  फिर भी आप अपनी अन्तिम शर्त भी बता ही दीजिये।श्

             और अब वे हाथ जोड़ कर एकदम नेताओं वाली विनम्र मुद्रा में आ गये – श् हम अपने बेटे की शादी या तो आपकी बेटी से करेंगे, नहीं तो उस लड़की से करेगें जिससे मेरे बेटे ने पिछले महीने अपनी शादी तय कर ली है।श्

             ३ण्ण्अब आप हमारी हालत का अन्दाजा लगा ही सकते हैं।  थके हारे बेजान कदमों को घसीटते हुये जब हमने अपने घर की घन्टी बजाई तो दरवाजा खोलते ही हमारी बेटी मिनी हमारी कन्धों पर झूल गई। – श् मां पापा मैने पी0सी0एस0 क्वालीफाई कर लिया है।  इन्टरनेट पर मैने देखा, मेरा रोल नम्बर काफी ऊपर है।  अब तो मेरा भविष्य मेरे हांथ मे है।श्

             और मैने अपना आंसुओ से तर चेहरा अपनी आत्म-विश्वासी बेटी के कन्धों में छुपा लिया ।

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