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  1. Poem

दीपोत्सव

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सहयोग परस्पर हो सबका सब को त्योहार मनाने दें।
हर आँगन को आलोकित कर सबको उल्लास मनाने दें।

इस तरह मनाएं दीप पर्व, अंतर का तम सब मिट जाये।
अज्ञान मिटे अर्न्तमन का, जीवन का घन तम हट जाये।
मावस की काली रजनी ज्यों, है तिमिर मोह का अभ्यंतर-
सबको इस पावन दीप पर्व पर वैदिक यज्ञ रचाने दें।
हर आँगन को आलोकित कर सबको उल्लास मनाने दें।

श्री गणपति पूजा का विधान, इस दीप पर्व पर है पावन,
दीपों की लड़ियां सजी हुई, छा रही छटा है मन भावन।
लेकिन कुछ आँगन ऐसे हैं, जो घिरे उदासी के तम से,
उनके भी सूने आँगन में खुशियों के दीप सजाने दें।
हर आँगन को आलोकित कर सबको उल्लास मनाने दें।

सम्पूर्ण नहीं यह ज्योति पर्व, कोई घर जब तक अंधियारा,
हम आत्म दीप बन फैला दें, वंचित के घर में उजियारा।
संकल्प हमें दे रहा दीप, खुद जल जग को देना प्रकाश,
बिन भेद-भाव और ऊॅंच-नीच, सब को मधुमास मनाने दें।
हर आँगन को आलोकित कर सबको उल्लास मनाने दें।

बन दिब्य ज्योति के संवाहक, घर-घर में अलख जगाना है,
रोशन कर ज्ञानदीप घर-घर, जग का अज्ञान मिटाना है।
हो जाए धरा से तिमिर शेष, अब ऐसी ज्योति जलानी है, 
शुभ दीप जला तम मिटा सभी मन का उद्यान खिलाने दें।
हर आँगन को आलोकित कर सबको उल्लास मनाने दें।

ये पर्व हमारे जीवन में, तो युग-युग की परिपाटी हैं।
हर ब्यथित मनुज के अंतर में खुशियां अपार भर जाते हैं।
मृदु-कुसुम-कली-मकरंद-गंध, शुभ-अलंकार-श्रृंगार-हार,
दीपावलि की अनुभूति नवल हर दिल को ही हर्षाने दें।
हर आँगन को आलोकित कर सबको उल्लास मनाने दें।

उत्सव उमंग की रेखाएं, जीवन से जुड़ी रंगोली है।
गंगा जमुनी तहजीब मगर, सबकी ही प्रेम की बोली है।
सबका अपना-अपना विधान, अपनी पूजा अपनी रोली,
अपनी पूजा अपनी रोली सबको उन्मुक्त सजाने दें।
हर आँगन को आलोकित कर सबको उल्लास मनाने दें।

Image (c) Jaipal Singh

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